Dosti
यारों मुझसे हो गई एक छोटी सी ख़ता
पूरी बोतल पी गया मग़र नशा नहीं चढ़ा
लगता था पहले एक पैग में ही हो जाऊँगा ढ़ेर
अब एक और, एक और का लगता है फेर
सब समझाते मुझको ज़्यादा मत पी घर कैसे जायेगा
सोचना क्या, जो नहीं पीता था महफ़िल में वही छोड़ने जायेगा
यार बहुत कमीने थे मेरे गर्लफ्रेंड की बातें उगलवाते थे
हम भी दिलदार बहुत थे, एक में चार लगाते थे
हँसी ठहाकों का वो दौर कभी ग़मग़ीन भी हो जाता था
जब कोई कमीना ज़्यादा के चक्कर में उल्टी करने जाता था
कुछ ज़्यादा ही सेंटी होके लड़ने भिड़ने लग जाते थे
एक्सट्रा पैग दोनों को देकर सब उनको शांत कराते थे
गाड़ी में ही चलाऊँगा ऐसा कहके जो हुकुम जमाते थे
दुर्घटना में जो स्वर्ग सिधार गये वो वीडियो उनको दिखाते थे
प्रोफेसरों को उच्चकोटि के शब्दों से उच्च पदों पर बिठाते थे
उनकी जवानी के किस्सों पर खूब ठहाके लगाते थे
दारू की इन महफ़िलों का दौर कब ख़त्म हो गया यारों
अब जो जाम पकड़ा इन हाथों में बस रूलाता है यारों
वो यार -दोस्त अब लौटकर वापस न आ पायेंगे
मिले कोई जो भूले भटके तो पूछना महफ़िल कब जमायेंगे
पीना ग़र बुरी बात है तो बुरी बात मुबारक हो उन्हें
मेरे यार मुझे मिलते हों जहाँ ऐसी सौ बुराई मंजूर मुझे
मुस्कुराना ही ख़ुशी नहीं होती
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती
खुद से भी ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है दोस्तों का
क्योंकि
सिर्फ दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती....